Sunday, November 17, 2024
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EPF vs NPS: ईपीएफ या एनपीएस, आपके रिटायरमेंट फंड के लिए कौन होगा बेहतर?

EPF vs NPS: अधिकांश नौकरी-पेशा लोग सर्विस शुरू करने के साथ ही रिटायरमेंट फंड बनाने के लिए प्लान बनाना शुरू कर देते हैं, ताकि रिटायरमेंट के समय उन्हें मोटी रकम मिलने के साथ ही रिटायरमेंट लाइफ पेंशन के तौर पर गुजारे के लायक पैसा मिलता रहे. रिटायरमेंट फंड बनाने के लिए कर्मचारियों के सामने दो प्रकार के ऑप्शन होते हैं. इसमें पहला कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) और दूसरा नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS) शामिल है. भारत की ज्यादातर कंपनियां पेंशन फंड जेनरेट करने के लिए अपने कर्मचारियों को ईपीएफ सुविधा उपलब्ध कराती हैं. नेशनल पेंशन सिस्टम कर्मचारियों को आयकर में छूट का लाभ दिलाता है. अब पेंशन फंड या रिटायरमेंट फंड बनाने के लिए आपके लिए कौन बेहतर साबित हो सकता है ईपीएफ या एनपीएस, आइए जानते हैं.

ईपीएफ या एनपीएस में क्यों निवेश किया जाता है?

नौकरी-पेशा लोगों का ईपीएफ या एनपीएस में निवेश करने के पीछे का उद्देश्य रिटायरमेंट के लिए सेविंग करना है. इसलिए ये दोनों सरकारी योजनाएं समय से पहले की निकासी को रोकते हैं. इन दोनों योजनाओं में निवेश करने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि सालों-साल तक जमा रकम पर चक्रवृद्धि ब्याज मिलने से कर्मचारियों के खाते में एक बड़ा फंड बन जाता है, जिसका इस्तेमाल रिटायरमेंट के बाद नियमित आमदनी बंद होने के बाद किया जाता है.

ईपीएफ और एनपीएस में अंतर क्या है?

ईपीएफ : कर्मचारी भविष्य निधि को संक्षेप में ईपीएफ कहते हैं. यह कर्मचारी भविष्य निधि संगठन की ओर से संचालित किया जाता है. ईपीएफ खाते में पैसा जमा करने पर रिटर्न की गारंटी सरकार देती है. 30 साल तक नौकरी करने के बाद जब कर्मचारी रिटायर होते हैं, तो उन्हें रिटायरमेंट के समय एकमुश्त रकम मिलती है.

एनपीएस: नेशनल पेंशन सिस्टम को संक्षेप में एनपीएस कहा जाता है. ईपीएफ की तरह यह भी सरकार की एक योजना है. इस योजना के तहत निवेश करने पर कर्मचारियों के पैसों को इक्विटी शेयर और ऋण बाजार में लगाया जाता है. इस वजह से इसमें पैसा लगाने वाले कर्मचारियों को बाजार दरों में चक्रवृद्धि होती है. इससे रिटायरमेंट के नियमित आमदनी और आकर्षक पेंशन मिलने की उम्मीद अधिक रहती है. इस योजना की खासियत यह है कि इसमें नौकरी-पेशा से इतर किसी भी धंधे में लगे लोग रिटायरमेंट फंड बनाने के लिए एनपीएस में निवेश कर सकते हैं. इसकी एक खासियत यह है कि आपको विकल्प चुनने का मौका देता है कि आपको इक्विटी में कितना पैसा लगाना चाहते हैं. इसमें आपके मासिक योगदान का 75 फीसदी तक निवेश किया जा सकता है. ईपीएफ में कर्मचारियों को इसकी अनुमति नहीं दी जाती.

एनपीएस और ईपीएफ में क्या दिक्कत है?

ईपीएफ में कुछ स्पष्ट कमियां हैं. यह आपको अपने इक्विटी निवेश को चुनने का विकल्प नहीं देता, भले ही आप थोड़े अधिक इक्विटी आवंटन के लिए सहज हों. ईपीएफ ब्याज दरें भी पिछले कुछ वर्षों में गिर गई हैं. हर कोई ईपीएफ में योगदान नहीं कर सकता. इसमें तभी निवेश किया जा सकता है, जब कोई किसी कंपनी या संगठन का कर्मचारी हो. एनपीएस रिटर्न बाजार से जुड़ा होता है. यह शॉर्ट टर्म के लिए जोखिम भरा हो सकता है, लेकिन लॉन्ग टर्म के लिए यह काफी फायदेमंद साबित होता है. एनपीएस एक ऐसा प्रोडक्ट है, जिस पर चार्ज कम लगता है और कोई भी व्यक्ति इक्विटी में 75 फीसदी तक का आवंटन चुन सकता है, जो लॉन्ग टर्म में बेहतरीन रिटर्न दे सकता है.

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