Monday, November 18, 2024
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Aashadh Gupt Navratri 2024: आषाढ़ गुप्त नवरात्रि शुरू, नौ दिनों तक की जाएगी माता रानी की 10 महविद्याओं की पूजा

Aashadh Gupt Navratri 2024: आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की तिथि के साथ गुप्त नवरात्रि आरंभ हो गई है, इस दिन घटस्थापना करने का विधान है. गुप्त नवरात्रि तंत्र-मंत्र करने वाले साधकों के लिए जरूरी मानी जाती है. इस दौरान मां दुर्गा के नौ स्वरूपों के साथ 10 महाविद्याओं की पूजा की जाती है. आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्र के दौरान देवी दुर्गा की 10 महाविद्याओं की पूजा करने का विधान है. इस दौरान मां काली, मां तारा, मां छिन्नमस्ता, मां षोडशी, मां भुवनेश्वरी, मां त्रिपुर भैरवी, मां धूमावती, मां बगलामुखी, मां मातंगी और कमला माता की पूजा गुप्त तरीके से की जाती है. शास्त्रों के अनुसार, इन दिनों में मां दुर्गा की पूजा अर्चना करने से सभी प्रकार के दुख दूर हो जाते हैं और घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है. आइए जानते हैं गुप्त नवरात्रि का शुभ मुहूर्त, घटस्थापना का समय, पूजा विधि और आरती…

गुप्त नवरात्रि पूजा विधि

आषाढ़ मास में आने वाली नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि नाम इसलिए दिया गया है, क्योकि इसमें गुप्त विद्याओं की सिद्धि के लिए साधना की जाती है. गुप्त नवरात्रि में तंत्र साधनाओं का महत्व होता है, जिन्हें गुप्त रूप से किया जाता है. इसलिए यह गुप्त नवरात्रि कहलाती हैं. गुप्त नवरात्रि में नौ दिनों तक उपवास रखने का विधान बताया गया है, इस नवरात्रि में माता की आराधना रात के समय की जाती है. इन नौ दिनों के लिए कलश की स्थापना की जा सकती है. अगर कलश की स्थापना की है तो दोनों समय मंत्र जाप, दुर्गा चालीसा या दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए. गुप्त नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा देर रात में की जाती है. मूर्ति स्थापना के बाद मां दुर्गा को लाल सिंदूर, लाल चुन्नी चढ़ाए. नारियल, केले, सेब, तिल के लडडू, बताशे चढ़ाएं और लाल गुलाब के फूल भी अर्पित करें. गुप्त नवरात्रि में सरसों के तेल के ही दीपक जलाकर ॐ दुं दुर्गायै नमः का जाप करना चाहिए.

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दुर्गा आरती (Maa Durga Aarti)

जय अम्बे गौरी मैया जय मंगल मूर्ति ।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥टेक॥
मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥जय॥
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥जय॥
केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी ।
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥जय॥
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥जय॥
शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥जय॥
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥जय॥
भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥जय॥
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥जय॥
श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥जय॥


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